Munh Ki Baat Sune Har Koi, Dil Ke Dard Ko Jane Kaun
Avazon Ke Bazaron Men Khamoshi Pahchane Kaun
Sadiyon Sadiyon Vahi Tamasha Rasta Rasta Lambi Khoj
Lekin Jab Ham Mil Jaate Hain, Kho Jata Hai Jaane Kaun
Vo Mera Aaina Hai Main Us Ki Parachhain Hun
Mere Hi Ghar Men Rahata Hai, Mujh Jaisa Hi Jane Kaun
Kiran Kiran Alsaata Suraj, Palak Palak Khulati Ninden
Yun Hi Dil Pighal Rahaa Hai, Zarraa-zarraa Jaane Kaun
Album: Insight (1994)
By: Jagjit Singh
Lyrics: Nida Fazli
***This Ghazal was also Title Song or OST of TV Serial Neem Ka Ped based on novel by - Dr Rahi Masoom Raza
मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन
सदियों-सदियों वही तमाशा रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन
जाने क्या-क्या बोल रहा था सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर जाग रहा था जाने कौन
वो मेरा आईना है या मैं उसकी परछाई हूँ
मेरे ही घर में रहता है मुझ जैसा ही जाने कौन
किरन-किरन अलसाता सूरज पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन
सदियों-सदियों वही तमाशा रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन
जाने क्या-क्या बोल रहा था सरहद, प्यार, किताबें, ख़ून
कल मेरी नींदों में छुपकर जाग रहा था जाने कौन
वो मेरा आईना है या मैं उसकी परछाई हूँ
मेरे ही घर में रहता है मुझ जैसा ही जाने कौन
किरन-किरन अलसाता सूरज पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन
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By: Jagjit Singh
From TV Serial Neem Ka Ped
(Based on novel by - Dr Rahi Masoom Raza)
ऊपर साझा की हुई निदा फ़ाज़ली की शायरी और उसमें छुपा अर्थ , जैसा मैंने समझा है , साझा कर रहा हूँ :
जवाब देंहटाएंयह कविता एक गहरे भावनात्मक और दार्शनिक स्वर में लिखी गई है, जो इंसान के आंतरिक दर्द, अकेलेपन, और स्वयं की खोज को दर्शाती है। प्रत्येक पंक्ति में गहरी भावनाएँ और सोच छिपी हुई हैं। इसे अलग-अलग भागों में समझते हैं:
"मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन"
यहाँ बताया गया है कि लोग केवल ऊपरी बातें सुनते हैं, लेकिन किसी के दिल के गहरे दर्द को समझने वाला शायद ही कोई होता है। शोरगुल से भरी दुनिया में, ख़ामोशी के अर्थ को पहचानने वाला कोई नहीं मिलता।
"सदियों-सदियों वही तमाशा रस्ता-रस्ता लम्बी खोज
लेकिन जब हम मिल जाते हैं खो जाता है जाने कौन"
यह जीवन के लंबे संघर्ष और खोज को दर्शाता है, जो सदियों से चलती आ रही है। पर जब हम किसी अपने से मिलते हैं, तो ऐसा लगता है कि कुछ खो गया, शायद अपनी पहचान या अपने सवाल।
"वो मेरा आईना है या मैं उसकी परछाई हूँ
मेरे ही घर में रहता है मुझ जैसा ही जाने कौन"
यह आत्मचिंतन की गहराई को दर्शाता है। कवि खुद को अपने आईने या अपनी छवि से जोड़ते हैं, और सवाल करते हैं कि उनके भीतर कोई और है, जो उनके जैसा ही लगता है, पर अनजाना है। यह खुद की पहचान और आत्मा की खोज को व्यक्त करता है।
"किरन-किरन अलसाता सूरज पलक-पलक खुलती नींदें
धीमे-धीमे बिखर रहा है ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन"
यहाँ जीवन के धीरे-धीरे बदलते स्वरूप की बात है। अलसाता सूरज और खुलती नींदें जीवन के हर दिन के संघर्ष और उसकी नाजुकता को दर्शाते हैं। हर कण (ज़र्रा) में कुछ छिपा है, जो समझ में नहीं आता।
मेरी सोच के अनुसार यह कविता जीवन के संघर्ष, आत्मचिंतन, और गहरे भावनात्मक अनुभवों को शब्द देती है। यह बताती है कि हर व्यक्ति अपनी यात्रा में दर्द और उलझन से गुजरता है, और अपनी पहचान या अपने भीतर छिपे किसी 'अनजाने' को समझने की कोशिश करता है।
-रविन्द्र कुमार करनानी
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